पॉलिटिकल कॉरिडोरः देवरिया से किस 'साहब' को इस्तीफा दिलवाकर चुनाव लड़वाने की तैयारी में है बीजेपी?

ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि किसी सीनियर ब्यूरोक्रेट को इस्तीफा दिलवाकर चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है।

पॉलिटिकल कॉरिडोरः देवरिया से किस 'साहब' को इस्तीफा दिलवाकर चुनाव लड़वाने की तैयारी में है बीजेपी?

ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि किसी सीनियर ब्यूरोक्रेट को इस्तीफा दिलवाकर चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। अफसर की सियासी पारी शुरू हो सकती है। इसको लेकर वजहें भी खूब चर्चा में हैं। दरअसल जिनके चुनाव लड़ने को लेकर ब्यूरोक्रेसी में कयास लगाए जा रहे हैं। वे भगवा दल के शीर्ष नेतृत्व की गुडबुक में आते हैं।

 यही वजह है कि उन्हें यूपी में बड़ी जिम्मेदारी भी सौंपी गई है। देवरिया सीट के लिए साहब को उपयुक्त इसलिए भी बताया जा रहा है, क्योंकि वो ब्राह्मण जाति से आते हैं। इस लोकसभा सीट पर पिछले दो बार से ब्राह्मण उम्मीदवार को ही जीत मिली है। वैसे साहब मूल रूप से देवरिया के पड़ोसी जिले के हैं। इतने बड़े अफसर होने के बाद साहब का गृह जिले में जाना लगा रहता है। विकास कार्यों को लेकर भी साहब की विशेष रुचि रहती है। वैसे चर्चा इस बात को लेकर भी है कि अगर ऐसा होता है तो साहब की कुर्सी का दावेदार कौन होगा। अब जो भी हो, वो तो वक्त बताएगा।

विरोध के गीत को कौन दे रहा ‘संगीत’
चुनावी बेला में जाति का खेला तेज हो जाता है। समर्थन और विरोध की गणित सधने लगती है। इस समय सत्तारूढ़ दल के कुछ चेहरों के खिलाफ एक जाति के मुखर सुर की काफी चर्चा है। यह आवाज उस इलाके आ रही है, जो 2014 में यूपी की सियासत में ध्रुवीकरण की प्रयोगशाला बना था। यहां के दावेदार खास निशाने पर हैं। यह स्वत: स्फूर्त है या प्रयोग, इसको लेकर अलग-अलग कयास हैं। फिलहाल, विरोध के इस गीत को भगवा दल के भीतर से ही ‘संगीत’ मिल गया है।

 इसलिए, कारणों की पड़ताल की दिशा भी उसी ओर टिक गई है। बताया जा रहा है कि आवाज भले आज उठी हो लेकिन इसकी जमीन दो साल पहले वाले चुनाव में ही तैयार हो गई थी। आज जिनका विरोध हो रहा है, तब उन पर भी अंदरखाने किसी और के विरोध का आरोप लगा था। इत्तेफाक से तब सियासी ताल भी बिगड़ गई और वहां कोई और ‘प्रधान’ बन गया। संगठन के एक अहम पद पर तैनाती ने भी तल्खी और बढ़ा दी। तब चोट खाए नेताजी को अब मौका मिला है तो वह विरोध के सुर को और तेज करने में लग गए हैं। अब दोनों का ही भविष्य ‘निर्णायक’ ही तय करेंगे।
लेकिन किसकी टीम?

राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप और सिंबल्स का खेल कोई नया नहीं है। अब हाथी और साइकल वाली पार्टियों को ही लीजिए। दोनों एक-दूसरे पर ‘बी-टीम’ का आरोप लगाते रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले जब गठबंधन बनने शुरू हुए तो हाथी वाली पार्टी ने किनारा कर लिया। वह दोनों गठबंधनों से अलग ‘एकला चलो’ की राह पर आगे बढ़ गई तो उस पर ‘बी-टीम’ का ठप्पा लगाने की कोशिशें और तेज हो गईं। पार्टी की मुखिया से उनके जन्मदिन के मौके पर इन आरोपों पर सवाल भी पूछा गया तो उन्होंने इसका बड़ी सफाई से जवाब दिया। कहा कि चुनाव में कुछ निश्चित नहीं होता। हो सकता है कि दोनों गठबंधन आपस में एक-दूसरे के वोट काट दें और इसका फायदा हमें हो जाए।

 वे दोनों ‘बी टीम’ बन जाएं और हम ‘ए टीम’ बन जाएं। जब लोकसभा चुनाव का ऐलान हो गया तो सबकी निगाह हाथी वाली पार्टी के प्रत्याशियों पर लगी थी। शुरुआत में बतौर प्रभारी कुछ मुस्लिम प्रत्याशी दिए तो लोग फिर ‘बी टीम’ बात करने लगे। जैसे ही अधिकृत लिस्ट आई तो नजारा बदल गया। पार्टी सवर्ण प्रत्याशियों पर ज्यादा दांव लगा रही है। लोग सोच रहे हैं कि इसका नफा-नुकसान किसको होगा? अब सबसे बड़ा सवाल ये खड़ा हो गया है कि ये किसकी टीम है?

प्रचार से दूर 'स्टार' प्रचारक
राजनीति में वक्त का कोई भरोसा नहीं होता। अब हाथी वाली पार्टी में 'रणनीतिकार' कहे जाने वाले पंडितजी को ही लीजिए। उनकी सहमति से ही पार्टी के सभी निर्णय लिए जाते थे। ऐसे में सबकी निगाह उन पर ही रहती थी। निगाह अब भी उन पर है लेकिन लोग तलाश रहे हैं कि वह हैं कहां? पिछले विधानसभा चुनाव के बाद वह प्रमुख बैठकों और चुनावों में कम ही नजर आ रहे हैं। इस बार भी अभी तक नजर नहीं आए। लोगों की निगाह स्टार प्रचारकों की लिस्ट पर लगी थी।

सब देखना चाहते थे कि इस लिस्ट में उनका नाम आता है या नहीं। खैर, लिस्ट में तीसरे नंबर पर उनका नाम दिखा। इस बार दूसरे नंबर पर पार्टी सुप्रीमो के भतीजे और उत्तराधिकारी का नाम था। इसको लेकर भी चर्चा हुई। पार्टी सुप्रीमो और उत्तराधिकारी की सभाएं भी शुरू हो गई हैं। पंडितजी का अभी तक इंतजार है। विधान सभा चुनाव में उन्होंने सबसे पहले शुरुआत कर सबसे ज्यादा सभाएं की थीं। इस बार वह कब और कहां सभाएं करेंगे। चर्चा यह है कि स्टार प्रचारक हैं तो प्रचार भी करेंगे ही लेकिन अभी तक कार्यक्रम नहीं लगाए गए। सवाल यह भी है कि बिना प्रचार के ही स्टार प्रचारक रहेंगे। हालांकि, उनके करीबियों का कहना है कि जल्द ही ब्राह्मण बहुल सीटों पर उनके कार्यक्रम लगाए जाएंगे।