NarayanBali NagBali Pooja-नारायणबलि नागबलि पूजा क्यों की जाती है, कहाँ और कैसे होती है जानिए पूजा विधि विधान

नारायणबलि और नागबलि, दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं, और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए, की जाती है। नारायणबलि और नागबलि, दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य, पितृदोष निवारण करना है, और नागबलि का उद्देश्य, सर्प या नाग की हत्या के दोष का, निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से, उद्देश्य पूरा नहीं होता है। इसलिए दोनों को, एक साथ ही, संपन्न करना पड़ता है।

पितर दोष के निवारण हेतु, अति विशिस्ट उपाय, नारायण बलि, नागबलि पूजा के बारे में,

सबसे पहले जानते है

क्या है नारायण बलि और नागबलि पूजा

नारायणबलि और नागबलि, दोनों विधि मनुष्य की अपूर्ण इच्छाओं, और अपूर्ण कामनाओं की पूर्ति के लिए, की जाती है। इसलिए दोनों को काम्य कहा जाता है। नारायणबलि और नागबलि, दो अलग-अलग विधियां हैं। नारायणबलि का मुख्य उद्देश्य, पितृदोष निवारण करना है, और नागबलि का उद्देश्य, सर्प या नाग की हत्या के दोष का, निवारण करना है। इनमें से कोई भी एक विधि करने से, उद्देश्य पूरा नहीं होता है। इसलिए दोनों को, एक साथ ही, संपन्न करना पड़ता है।

इस पूजा से सम्बंधित समस्त जानकारी वीडियो के माध्यम से दी गई है वीडियो जरूर देखे

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किन  कारणों से कीजाती है नारायण बलि पूजा,

जिस परिवार के किसी सदस्य, या पूर्वज का, ठीक प्रकार से अंतिम संस्कारपिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो, उनकी आगामी पीढि़यों में, पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन, कष्टमय रहता हैजब तक कि पितरों के निमित्त, नारायणबलि विधान न किया जाए। प्रेतयोनी से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए, नारायणबलि की जाती है। परिवार के किसी सदस्य की, आकस्मिक मृत्यु हुई हो। आत्महत्यापानी में डूबने सेआग में जलने सेदुर्घटना में मृत्यु होने से, ऐसा दोष उत्पन्न होता है।

क्यों की जाती हैयह पूजा ?

शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए, नारायणबलिनागबलि कर्म करने का विधान है। यह कर्म किस प्रकार, और कौन कर सकता है, इसकी पूर्ण जानकारी होना भी जरूरी है। यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति, कर सकता है जो, अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं, वे भी यह विधान कर सकते हैं। संतान प्राप्तिवंश वृद्धिकर्ज मुक्तिकार्यों में आ रही बाधाओं के, निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो, कुल के उद्धार के लिए, पत्नी के बिना भी, यह कर्म किया जा सकता है। यदि पत्नी गर्भवती हो तो, गर्भ धारण से पांचवें महीने तक, यह कर्म किया जा सकता है। घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो, ये कर्म एक साल तक नहीं किए जा सकते हैं। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी, एक साल तक यह कर्म करना निषिद्ध माना गया है।

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कब नहीं की जा सकती हैनारायणबलि नागबलि पूजा

नारायणबलि गुरुशुक्र के अस्त होने पर, नहीं किए जाने चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णय सिंधु के, मतानुसार, इस कर्म के लिए, केवल नक्षत्रों के गुण व दोष देखना ही उचित है। नारायणबलि कर्म के लिए, धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र को, निषिद्ध माना गया है। धनिष्ठा नक्षत्र के, अंतिम दो चरणशत तारकापूर्वा भाद्रपदउत्तरा भाद्रपद एवं रेवतीइन साढ़े चार नक्षत्रों को, धनिष्ठा पंचक कहा जाता है। कृतिकापुनर्वसुविशाखाउत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद, ये छह नक्षत्र त्रिपाद नक्षत्र माने गए हैं। इनके अलावा, सभी समय यह कर्म, किया जा सकता है।

पितर पक्षसर्वाधिक श्रेष्ठ समय

नारायणबलि- नागबलि के लिए, पितर पक्ष सर्वाधिक श्रेष्ठ समय, बताया गया है। इसमें किसी योग्य पुरोहित से, समय निकलवा कर, यह कर्म करवाना चाहिए। यह कर्म गंगा तट अथवा अन्य किसी नदी, सरोवर के किनारे में भी, संपन्न कराया जाता है। संपूर्ण पूजा, तीन दिनों की होती है।

शास्त्रों में उल्लेख है कि, ज्ञात-अज्ञात अवस्था में मृत्यु का संदेश, जब तक प्राप्त नहीं होतातब तक लापता व्यक्ति को, मृत नहीं माना जा सकता। इसके लिए एक माहतीन माह अथवा वर्ष पर्यन्त तक, इंतजार किया जाता है। इस अवधि में, व्यक्ति के वापस न लौटने पर, नारायण बलि के माध्यम से, प्रेतत्व शांति का विधान है।

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नारायण बलि, ऐसा विधान हैजिसमें लापता व्यक्ति को, मृत मानकर, उसका उसी ढंग से क्रिया कर्म किया जाता हैजैसे किसी की मौत होने पर। इस प्रक्रिया में, कुश घास से प्रतीकात्मक शव बनाते हैं, और उसका वास्तविक शव की तरह ही, दाह संस्कार किया जाता है। इसी दिन से, आगे की क्रियाएं शुरू होती हैंमसलन बाल उतारनातेरहवींब्रह्मभोज वगैरह। केदारघाटी की आपदा में लापता हुए, कई लोगों के परिजन एक माह की अवधि पूर्ण होने पर, इसी विधान से अपनों का क्रियाकर्म कर रहे थे

देवालयशिवालयतीर्थ अथवा पूजा स्थान पर, किसी का शरीर छूटता है, और वह अज्ञात हो जाता है तोउसे परमात्मा में लीन माना गया है। उसकी मृत्यु का पता न होने पर, सूतक का विधान जानना, असंभव है। जिस प्रकार, एक संत के समाधिस्थ होने के उपरांत, किसी प्रकार का सूतक नहीं माना जाताउसी प्रकार भगवान के मार्ग पर निकले, व्यक्ति का भी यही लक्षण माना गया है।

प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए, षोडशी क्रिया का विधान है। पितर कर्मकांड के आधार पर, नारायण बलि के बाद, चितनल (कुभ कलश) की स्थापना की जाती है, और 11वें दिन आत्मा प्रेतत्व से मुक्त हो जाती है।

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नारायण नागबलि ये दोनो विधी, मानव की अपूर्ण इच्छा कामना पूर्ण करने के उद्देश से किये जाते है, इसीलिए ये दोनों विधी, काम्यू कहलाते है। नारायणबलि और नागबपलि, ये अलग-अलग विधीयां है। नारायण बलि का उद्देश मुखत:, पितृदोष निवारण करना है । और नागबलि का उद्देश सर्पसापनाग हत्या का, दोष निवारण करना है। केवल नारायण बलि, यां नागबलि, नहीं कर सकतेंइसगलिए ये दोनो विधीयां, एक साथ ही करनी पडती हैं। पितृदोष निवारण के लिए, नारायण नागबलि कर्म, करने के लिये, शास्त्रों मे निर्देशित किया गया है । प्राय: यह कर्म जातक के दुर्भाग्य संबधी दोषों से, मुक्ति दिलाने के लिए किये जाते है। ये कर्म किस प्रकार, व कौन इन्हें कर सकता है इसकी पूर्ण जानकारी होना अति आवश्‍यक है। ये कर्म जिन जातकों के, माता पिता जिवित हैं, वे भी ये कर्म विधिवत सम्पन्न कर सकते है। यज्ञोपवीत धारण करने के बाद, कुंवारा ब्राह्मण यह कर्म सम्पन्न करा सकता है। संतान प्राप्‍ती, एवं वंशवृध्दि के लिए, ये कर्म सपत्‍नीक करने चाहीए।

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