महंगी फीस तोड़ रही बच्चों को बेहतर स्कूल में शिक्षा दिलाने का सपना, अभिभावक परेशान

विद्यालयों में नया शैक्षिक सत्र शुरू हो चुका है। बरेली जिले के नामचीन स्कूलों की प्रीएनसी कक्षा में प्रवेश के लिए अभिभावकों को सिफारिशें लगानी पड़ी रही हैं

महंगी फीस तोड़ रही बच्चों को बेहतर स्कूल में शिक्षा दिलाने का सपना, अभिभावक परेशान

विद्यालयों में नया शैक्षिक सत्र शुरू हो चुका है। बरेली जिले के नामचीन स्कूलों की प्रीएनसी कक्षा में प्रवेश के लिए अभिभावकों को सिफारिशें लगानी पड़ी रही हैं। प्रवेश शुल्क के नाम पर भी बड़ी रकम ली जा रही है। इससे अभिभावक परेशान हैं। 

कोहाड़ापीर निवासी विनोद ने बताया कि उनके पड़ोसी ने अपने बच्चे का एक नामचीन स्कूल में प्रवेश कराया है। उसी स्कूल में वह अपने बेटे का प्रवेश कराने ले गए तो मना कर दिया गया। सिफारिश लगाने पर वे प्रवेश देने के लिए राजी तो हो गए पर लाखों रुपये की फीस सुनकर उन्होंने अपने बच्चे को दूसरे स्कूल में पढ़ाने का निर्णय लिया है।


मध्यम स्तर के निजी विद्यालय की तीन माह की फीस 
कक्षा                       फीस    
प्रीएनसी व केजी     9,300 से 10,000   
एक व दो              10,450 से 11,000   
तीन व पांच            10,800 से 12,000
प्रवेश शुल्क            5,000 से 10,000  
पंजीकरण शुल्क      500 
 
शहर के नामचीन विद्यालय की तिमाही फीस
कक्षा                          फीस 
प्रीएनसी से पांचवीं     16,000      
छह से दसवीं            16,500   
11वीं और 12वीं        18,000   
पंजीकरण शुल्क        1,000
प्रवेश शुल्क              2,50,000 
नोट : शुल्क रुपये में है। यह विद्यालयों के हिसाब से कम या अधिक भी हो सकता है।

अभिभावक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अंकुर सक्सेना ने बताया कि जिला शुल्क निर्धारण समिति की लंबे समय से बैठक नहीं हुई है। समिति को देखना है कि स्कूल जरूरत हिसाब से फीस बढ़ा रहे हैं या नहीं। कानून में सीपीआई और पांच फीसदी तक फीस बढ़ाने का प्रावधान है। समिति बैठक कर स्कूलों के दस्तावेजों का अध्ययन करे। इसको लेकर डीआईओएस से मुलाकात की जाएगी। 

पैरेंट्स फोरम बरेली के समन्वयक मुहम्मद खालिद जीलानी ने बताया कि उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क का निर्धारण) अधिनियम लागू कराने में जिला प्रशासन और जिला स्तरीय शुल्क निर्धारण समिति असफल साबित हुई है। शुल्क अधिनियम का अस्तित्व में आना और उसे लागू कराना राज्य सरकार की प्राथमिकता में है। इसके बाद भी छह साल बीतने के बाद भी नतीजा शून्य है। इससे अभिभावकों में अविश्वास पैदा हुआ है। साथ ही स्कूलों की मनमानी पहले से अधिक बढ़ गई है।  

इंडिपेंडेंट स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष निर्भय बेनीवाल ने बताया कि फीस बढ़ाने के लिए उपभोक्ता उत्पाद सूचकांक (सीपीआई) और पांच प्रतिशत को जोड़ा जाता है। इसका योग अगर अधिक होता है तो शुल्क निर्धारण समिति से अनुमति लेनी होती है।