क्या आप जानते है? शनिदेव का वाहन कैसे बन गया कौवा, क्यों हैं उनके लिए सबसे प्रिय

क्या आपने कभी शनिदेव के वाहनों को देखा है? एक नहीं बल्कि शनि देव के नौ वाहन हैं, लेकिन उनका सबसे प्रिय है कौआ। अधिकतर तस्वीरों और धार्मिक ग्रंथों में शनिदेव को कौए की सवारी करते हुए ही चित्रित किया जाता है। हिंदू धर्म में कौए का महत्व भी बहुत है। इसे पितरों का प्रतीक माना जाता है और अतिथि के आगमन का संकेत भी। कौए को लेकर धार्मिक ग्रंथों में कई कहानियां भी हैं।

क्या आप जानते है? शनिदेव का वाहन कैसे बन गया कौवा, क्यों हैं उनके लिए सबसे प्रिय

आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी 'झूठ बोले कौआ काटे', इससे जुड़ी एक थ्योरी यह भी है कि शनि देव कर्म के देवता हैं और लोगों को उनके कर्मों के हिसाब से दंड भी देते हैं। ऐसे में झूठ का पर्याय किसी गलत काम से है और कौए का शनि देव के दंड से।

बता दे कि शनिवार का दिन शनि देव की पूजा के लिए होता है. शास्त्रों में शनि देव को न्याय का देवता और कर्मफलदाता माना गया है. क्योंकि शनि देव कर्मों के अनुरूप ही भक्तों को फल देते हैं. बात करें वाहन की तो हिंदू धर्म में सभी देवी-देवताओं के वाहन हैं, जैसे- मां दुर्गा का वाहन सिंह, भगवान विष्णु का गरुड़, गणेश जी का वाहन मूषक, देवी सरस्वती का हंस, शिवजी का नंदी और कार्तिकेय का वाहन मयूर है. ठीक इसी तरह शनि देव का वाहन कौआ है.

क्या आपने कभी शनिदेव के वाहनों को देखा है? एक नहीं बल्कि शनि देव के नौ वाहन हैं, लेकिन उनका सबसे प्रिय है कौआ। अधिकतर तस्वीरों और धार्मिक ग्रंथों में शनिदेव को कौए की सवारी करते हुए ही चित्रित किया जाता है। हिंदू धर्म में कौए का महत्व भी बहुत है। इसे पितरों का प्रतीक माना जाता है और अतिथि के आगमन का संकेत भी। कौए को लेकर धार्मिक ग्रंथों में कई कहानियां भी हैं।

कौए को ही क्यों शनि का प्रिय वाहन बताया जाता है और क्या है इसका धार्मिक महत्व 

पहले जानिए कैसे हुआ शनिदेव का जन्म

कौआ कैसे शनिदेव का वाहन बना उसे जानने के लिए पहले हमें शनिदेव के जन्म की कहानी जाननी होगी। सूर्यदेव की पत्नी संध्या से उनका ताप नहीं झेला जा रहा था और इसके कारण उन्होंने अपनी छाया का निर्माण किया और खुद तप करने चली गईं। उन्होंने छाया से कहा कि वो सूर्यदेव और उनके दोनों बच्चों यम और यामी का ख्याल रखेंगी। छाया भी संध्या की आज्ञा को मानते हुए कई वर्षों तक यही करती रहीं। हालांकि, संध्या ने यह भी कहा था कि छाया को सूर्यदेव से दूरी बनाकर रखनी होगी।

जब संध्या की तपस्या खत्म हुई तब तक छाया को सूर्यदेव से शनिदेव की प्राप्ति हो चुकी थी। क्योंकि शनिदेव छाया से जन्मे थे इसलिए कुरुप थे। ऐसे में सूर्यदेव ने खुद ही शनिदेव और छाया का परित्याग कर दिया था। जब संध्या को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने छाया पर बहुत क्रोध दिखाया। हालांकि, संध्या ने छाया को सूर्यलोक से निकालने के लिए बहुत प्रयास किए और अंतत: सूर्यदेव को इसके बारे में पता चल ही गया। पत्नी के इस व्यवहार से सूर्यदेव बहुत क्रोधित हुए और छाया शनिदेव के साथ चली गईं। 

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, शनिदेव का वाहन कौवा, सबसे चालाक प्राणियों में से एक है. यह न सिर्फ खतरे को आसानी से भांप सकता है बल्कि यह जहां रहता है वहां सुख और प्रसन्नता का वास रहता है. मान्यता यह भी है कि शनिदेव का कृपा से कौवा कभी बीमार नहीं पड़ता है.

कौवा कैसे बना शनि की सवारी?

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य की पत्नी संध्या उनका ताप नहीं झेल पा रही थी इसलिए उन्होंने अपना छाया का निर्माण किया और अपने दोनों बच्चों यम और यमुना को छाया के पास छोड़कर तप करने चली गई. जब तक संध्या की तपस्या समाप्त हुई तब तक छाया की सूर्यदेव से शनिदेव की प्राप्ति हो चुकी थी. जब संध्या को इस बारे में पता चला तो वे बहुत क्रोधित हुईं, हालांकि तब तक सूर्य भगवान शनिदेव और छाया का परित्याग कर चुके थे.

संध्या और सूर्यदेव के इस व्यवहार से दुखी होकर छाया शनिदेव के साथ वन में चली गईं. जब सूर्य देव को छाया और शनिदेव के वन में रहने का पता चला तो उन्होंने उन दोनों को मारने के लिए वन में आग लगी दी जिसके बाद छाया परछाई होने के कारण आग से निकल गईं लेकिन शनिदेव आग में फंस गए जिसके बाद उनके साथ रहने वाले एक कौवे ने शनिदेव को उस आग से निकाला था. यही कारण है कि कौवा शनिदेव का प्रिय हो गया जिसके बाद उन्होंने कौवे को अपना वाहन बना लिया.

एक दिन कौवा शनिदेव को लेकर अपने काकलोक पहुंचा, कौए की माता ने शनि को पुत्र संबोधित कर खूब प्यार दुलार दिया. कौए ने अपनी माता से शनिदेव को अपने साथ रखने की प्रार्थना की तो उसकी प्रार्थना करने पर वह उनको साथ रखने के लिए मान गईं जिसके बाद शनिदेव ने कौवे को अपना वाहन बना लिया.