गुरु गोरखनाथ की नगरी में लगी काम-धंधे और पेंशन की अर्जी, लोगों ने नई सरकार से जोड़ी उम्मीदों की डोर

गोरखपुर में ही हर्ष श्रीवास्तव का बचपन बीता, पढ़ाई-लिखाई हुई और अब इसी जिले में वह सरकारी नौकरी भी कर रहे हैं।

गुरु गोरखनाथ की नगरी में लगी काम-धंधे और पेंशन की अर्जी, लोगों ने नई सरकार से जोड़ी उम्मीदों की डोर

गोरखपुर में ही हर्ष श्रीवास्तव का बचपन बीता, पढ़ाई-लिखाई हुई और अब इसी जिले में वह सरकारी नौकरी भी कर रहे हैं। मां संगीता श्रीवास्तव, पिता राकेश कुमार श्रीवास्तव और पत्नी प्रीति के साथ हर्ष शहर के जटेपुर दक्षिणी मुहल्ले में रहते हैं। मां हिंदी और सोशियॉलजी में पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद शिक्षिका बनीं और एक प्राइवेट स्कूल में प्रिंसिपल पद से रिटायर हो चुकी हैं। मध्यकालीन इतिहास में पीजी करने के बाद व्यवसाय की ओर मुड़े राकेश कुमार की शहर की धड़कन कहे जाने वाले गोलघर इलाके में ग्रॉसरी शॉप थी। कोविड पीरियड में दुकान बंद हुई और वह बिजनेस दोबारा शुरू नहीं हो सका।


मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास में पीजी करने के साथ डीएल एड और TET क्वॉलिफाइड हर्ष कहते हैं, ‘पहले घर में तीन अर्निंग मेंबर थे। अब मैं ही हूं। पहले परिवार की कुल कमाई के 40 प्रतिशत तक बचत हो जाती थी। अब महंगाई के चलते 10 पर्सेंट बचाना भी मुश्किल हो गया है। यह बड़ा सेटबैक है। रोजमर्रा की जरूरत वाली चीजों के साथ पढ़ाई-लिखाई और इलाज का खर्च काफी बढ़ गया है।’ हर्ष की पत्नी प्रीति ने केमिस्ट्री में M.Sc. करने के अलावा डीएल एड भी किया है। वह TET क्वॉलिफाई कर चुकी हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं।


आयुष्मान योजना और पेंशन का मुद्दा
28 साल के हर्ष कहते हैं, ‘जरूरी चीजों के दाम बहुत अधिक बढ़ने से परेशानी है। इन पर सरकार का कंट्रोल दिखना चाहिए। दाम में तेज उतार-चढ़ाव के चलते किसी महीने खर्च मैनेजेबल रहता है तो किसी महीने बढ़ जाता है।’ बचत के बारे में पूछने पर हर्ष कहते हैं कि ‘पहले परिवार की बचत का पैसा काफी हद तक सहारा ग्रुप की स्कीम्स और इंश्योरेंस पॉलिसी में जाता था।
इसके बाद पोस्ट ऑफिस की बचत योजनाओं में निवेश किया गया, लेकिन उनसे रिटर्न सहारा की स्कीम्स जितना नहीं था। अब बीमा पॉलिसी लेने के अलावा म्यूचुअल फंड्स के SIP में इनवेस्टमेंट करते हैं।’ हर्ष के पिता राकेश श्रीवास्तव ने सीनियर सिटिजन और इलाज से जुड़े मसले गिनाए। उन्होंने कहा, ‘लोअर क्लास के लिए कम रकम की ही सही, वृद्धावस्था पेंशन है, लेकिन मिडल क्लास का कोई सहारा नहीं। पेंशन की व्यवस्था सभी बुजुर्गों के लिए होनी चाहिए।’


घुटनों में तकलीफ के अलावा हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज का सामना कर रहीं संगीता श्रीवास्तव ने कहा, ‘इलाज का खर्च बहुत बढ़ गया है। आयुष्मान योजना अच्छी तो है, लेकिन यह सबके लिए होनी चाहिए। उपचार के जो भी तरीके हैं, उनकी क्या फीस होनी चाहिए, वह इसमें तय नहीं की गई है। कुछ अस्पताल वाले किसी न किसी प्रोसिजर को कवरेज से बाहर बता देते हैं।

 योजना में सुधार होना चाहिए।’
कम वैकेंसी, परीक्षाओं में गड़बड़ी
हर्ष कहते हैं, ‘नौकरी के बीच अब तैयारी के लिए समय कम बचता है, लेकिन मैंने यहां एक कोचिंग इंस्टिट्यूट से पढ़ाई की है और खुद को अपग्रेड करने में जुटा हूं।‘ प्रीति कहती हैं, ‘दिक्कत यह है कि वैकेंसी काफी कम आ रही हैं। परीक्षाएं समय से नहीं हो रहीं। एग्जाम होते भी हैं तो कोई न कोई गड़बड़ी हो जाती है। मैंने उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग का रिव्यू ऑफिसर का एग्जाम दिया था, लेकिन पेपर कैंसल हो गया। लेकिन हम दोनों बेहतर भविष्य के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं।’


गोरखपुर के बड़े मुद्दे क्या हैं?
हर्ष कहते हैं, ‘स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके बहुत कम हैं। GIDA (गोरखपुर इंडस्ट्रियल डिवेलपमेंट अथॉरिटी) तो काफी पहले से बनी हुई है। सरकारों ने कुछ प्रयास किए हैं, लेकिन यहां ऐसी बड़ी कंपनियां नहीं हैं, जो स्थानीय नौजवानों को बड़ी तादाद में रोजगार दे सकें। कुशल और अकुशल, हर तरह के नौजवानों को काम के लिए बाहर जाना पड़ता है। यह गोरखपुर सहित पूरे पूर्वांचल की समस्या है।’


रोजगार सृजन की सरकारी योजनाएं अच्छी हैं, लेकिन स्किल डिवेलपमेंट सहित कई योजनाओं की पहुंच आम लोगों तक नहीं है। स्किल डिवेलपमेंट की ट्रेनिंग लेने के बाद भी लोग सैलरीड जॉब के लिए कोशिश कर रहे हैं क्योंकि उद्यम शुरू करने के लिए उचित मंच उन्हें नहीं मिल पा रहा है। इस मोर्चे पर सपोर्ट की जरूरत है।


हर्ष कहते हैं, ‘गोरखपुर में इलेक्ट्रिक बसें चलने लगी हैं। यह अच्छी पहल है, लेकिन संख्या बहुत कम है। संख्या बढ़नी चाहिए ताकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर लोगों का भरोसा बढ़े। इससे जाम की समस्या से निपटने में भी मदद मिलेगी।’
नई सरकार से क्या चाहते हैं?


1- ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली, आठवां वेतन आयोग।
2- सभी बुजुर्गों के लिए यूनिवर्सल पेंशन की व्यवस्था।
3- आयुष्मान योजना का लाभ सभी लोगों को मिले। हर उपचार की फीस तय हो।
4- रेलवे किराए में सीनियर सिटिजन के लिए कंसेशन बहाली, रिजर्वेशन में लोअर बर्थ ही मिले।
5- शिक्षा संस्थानों की ऊंची फीस पर लगाम। ज्यादा सरकारी स्कूल-कॉलेज खुलें, स्कॉलरशिप बढ़ाई जाएं।
6- सरकारी विभागों में भर्ती बढ़ाई जाए, ज्यादा पदों के लिए परीक्षाएं हों और इनमें गड़बड़ी रोकी जाए।
7- स्किल डिवेलपमेंट ट्रेनिंग के बाद उद्यम शुरू करने के लिए सपोर्ट सिस्टम बेहतर किया जाए।
8- जरूरी चीजों की कीमतों में उछाल रोकने की अच्छी व्यवस्था बनाई जाए।


जानिए गोरखपुर के बारे मेंराप्ती और रोहिणी नदियों के किनारे बसा गोरखपुर पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रमुख जिला है। गोरखपुर शहर में ही काकोरी कांड के क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल को अंग्रेजों ने फांसी दी थी। यह शहर पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय, एयरफोर्स स्टेशन, बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज और गीता प्रेस के लिए तो जाना ही जाता है, यहां का गोरखनाथ मंदिर नाथ पंथ का सबसे बड़ा केंद्र है।


उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ इसी मंदिर के महंत हैं। यहां के महंत दिग्विजयनाथ पहली बार 1967 में हिंदू महासभा के टिकट पर गोरखपुर सीट से लोकसभा पहुंचे थे। उनके बाद गोरक्ष पीठाधीश्वर बने महंत अवैद्यनाथ हिंदू महासभा और बीजेपी के टिकट पर यहां से चार बार सांसद बने। उनके बाद योगी आदित्यनाथ 1998 से 2014 तक लगातार 5 बार सांसद रहे।

फिलहाल वह गोरखपुर शहर सीट से विधायक हैं। आजादी के बाद के लगातार 3 चुनावों में यहां कांग्रेस की जीत हुई। 1967 में गैप के बाद 1971 में सीट एक बार फिर कांग्रेस के पास गई। 1977 में जनता पार्टी के बाद 1980 और 1984 के चुनावों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की। उसके बाद से कांग्रेस का खाता नहीं खुला। हालांकि SP के जमुना निषाद ने दो चुनावों में योगी को बहुत करीबी टक्कर दी थी।

अभी बीजेपी में शामिल मनोज तिवारी ने 2009 में योगी के खिलाफ SP के टिकट पर चुनाव लड़ा था और तीसरे नंबर पर रहे थे। योगी के विधानसभा में जाने के बाद 2018 के उप चुनाव में एसपी-बीएसपी के उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र शुक्ला को हराया, लेकिन कुछ ही समय बाद वह बीजेपी में चले गए। 2019 में रवि किशन बीजेपी के टिकट पर सांसद बने।

पिछले तीन बार के विजेता-
2009 योगी आदित्यनाथ (BJP)
2014 योगी आदित्यनाथ (BJP)
2109 रवि किशन (BJP)