UP: दूर तक जाता है कैराना का संदेश...गन्ना बकाया, छुट्टा पशु और ये हैं लोगों के प्रमुख मुद्दे

कहीं इसका जोर, कहीं उसका जोर। बस शोर ही शोर। चुनावी बयार क्या चली, गलियां सियासी हो गईं।

UP: दूर तक जाता है कैराना का संदेश...गन्ना बकाया, छुट्टा पशु और ये हैं लोगों के प्रमुख मुद्दे

कहीं इसका जोर, कहीं उसका जोर। बस शोर ही शोर।  चुनावी बयार क्या चली, गलियां सियासी हो गईं। घर-आंगन सियासी हो गए। चौबारे सियासी हो गए। कहीं लकीरें खिंच रही हैं, तो कहीं लकीरें मिट रही हैं। यहां जज्बात बंट रहे हैं। खेमों में। धड़ों में...। सियासी प्रयोगशालाएं दिन-रात जुटी हैं। खामोशी से। पूरी तन्मयता से। प्रयोग जारी है।  इस चुनाव में कैराना की जनता क्या सोच रही है, कौन से चुनावी मुद्दे हैं और आमजन के मन में क्या है, पेश है इसकी थाह लेती 


पलायन जैसे मुद्दे पर सुर्खियां बटोरने वाला कैराना फिर चुनावी दंगल में है। योद्धा मैदान में आ चुके हैं। अखाड़े में दंड-बैठक जारी है। कैराना यूं ही नहीं अहम है। यहां से चली सियासी बयार दूर तलक जाती है। यही वजह है कि सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक रखी है। योद्धा अपने तरकश के तीरों को पैना बनाने में जुटे हैं।


शाम के चार बजे हैं। हम आम जनता का मिजाज लेने के लिए निकले तो भारतीय किसान यूनियन के बड़े आंदोलन का गवाह बना गांव खेड़ी करमू गुलजार मिला। यहां लोगों में चुनावी चर्चा चल रही थी। चीनी मिलों से लौटे किसान भी चुनावी चर्चा में मशगूल दिखे। हम भी उनमें शामिल हो गए। एक कोने से आवाज आती है, कैराना के बारे में चाहे कुछ भी कहा जाए, पर यहां भाईचारा लाजवाब है। 

मुकाबला इस बार भी सीधा भाजपा और सपा में नजर आ रहा है। हालांकि, बसपा भी चुनावी मैदान में ताल ठोक रही है, पर असली लड़ाई तो अलग ही है। बीच में ही रवि कुमार कहते हैं, कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे को कैसे भूल जाएं। एक दौर था जब शाम पांच बजे के बाद खेतों में नहीं जा सकते थे। आज जब भी मन करे, खेत में जा सकते हैं। कृषि यंत्र भी खेत में सुरक्षित पड़े रहते हैं।
मुस्लिम बोले, जाट तो पहले ही भाजपा को वोट दे रहे थे


रात के लगभग सवा आठ बजे हैं। मगरिब की नमाज अदा की जा चुकी है। रोजा इफ्तारी के बाद कैराना शहर की आला कला जगह पर चुनावी चर्चा चल रही है। मतलूब हसन कहते हैं, चुनाव को जातिगत आधार पर बांटा जाता है, पर सही बात यह है कि यहां तो मुद्दे किसानों के हैं। हिंदू, मुस्लिम सभी किसान हैं। शोर मचा है कि रालोद अब सपा का साथ छोड़कर भाजपा के साथ चला गया। अरे भाई! पहले ही पचास प्रतिशत से ज्यादा जाट वोटर भाजपा की ओर थे, अब जयंत कितना कमाल दिखा पाएंगे? अब्दुल कादिर कहते हैं, रोजगार एक अहम मुद्दा है।


हिंदू गुर्जर बनाम मुस्लिम गुर्जर
कैराना सीट पर जहां हिंदू गुर्जरों की संख्या काफी है, तो मुस्लिम गुर्जर भी कम नहीं हैं। दोनों में विचित्र समीकरण है। दोनों एक-दूसरे को सपोर्ट भी करते रहे हैं और एक-दूसरे के खिलाफ भी ताल ठोकते रहे हैं। हिंदू गुर्जरों की कलस्यान चौपाल ओर मुस्लिम गुर्जरों के हसन परिवार का चबूतरा इनकी राजनीति का बड़ा केंद्र रहे हैं। तैयब हसन कहते हैं, सियासी अदावत अपनी जगह है, पर दोनों में मसले एक जैसे हैं। यही कारण है कि हिंदू हो या मुस्लिम पक्ष, कोई किसी एक धड़े से नहीं बंधा है। जो उनसे जुड़ा है, वे उसी के साथ खड़े हैं।


पलायन अब गुजरे जमाने की बात
शास्त्रीय संगीत के लिए पूरे विश्व में विख्यात कैराना पलायन के लिए भी बदनाम रहा। भाजपा नेता हुकुम सिंह ने कैराना और कांधला के 346 परिवारों की एक सूची जारी की थी। हालांकि, अब कैराना के लोग पलायन के मुद्दे को भूल गए हैं। कैराना के नसीम खान, वसीक, रामबीर इसके सवाल पर कहते हैं, पलायन जैसी अब कोई बात नहीं है। अमन चैन है। तीन दिन पूर्व हुए प्रबुद्ध सम्मेलन में सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी पलायन के मुद्दे को छुआ अवश्य, पर अपने ही अंदाज में उसे रखा। कहा, अब कैराना में पलायन नहीं, व्यापार आगे बढ़ रहा है। उनकी इस बात पर अन्य लोग भी मुहर लगाते हैं।


किसी की भी डगर आसान नहीं
इस बार के चुनावी चौसर की बात की जाए तो इस सीट पर भाजपा ने दोबारा से सांसद प्रदीप चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि सपा ने हसन परिवार की बेटी इकरा हसन और बसपा ने सहारनपुर के रहने वाले श्रीपाल राणा पर दांव खेला है। 11 अन्य प्रत्याशी भी ताल ठोक रहे हैं। भाजपा के प्रदीप चौधरी जहां गुर्जर मतों के अलावा हिंदू और भाजपा के परंपरागत वोट बैंक को जोड़ रहे हैं, वहीं सपा की इकरा हसन मुस्लिम वोट बैंक और अन्य मतदाताओं में पकड़ बनाए हैं। उनके सामने अन्य वोटरों को जोड़ना ही सबसे बड़ी चुनौती है। बसपा के श्रीपा

ल राणा के पास राजपूत वोटों के साथ ही दलित, और अन्य के वोट हैं। अब देखना यह है कि कौन इस सीट पर बाजी मारता है।
गन्ना बकाया, छुट्टा पशु और गंदा पानी लोगों के प्रमुख मुद्दे
यहां स्थानीय मुद्दे भी चुनावी केंद्र में हैं। इनमें छुट्टा पशुओं, बकाया गन्ना भुगतान के साथ ही फैक्टरियों से निकले प्रदूषित पानी और नाले की समस्या प्रमुख मुद्दे हैं। भैंसवाल गांव के रहने वाले सोहनवीर, विकास, मनीष कहते हैं कि छुट्टा पशुओं ने उनका जीना ही मुहाल कर दिया है। सोंटा रसूलपुर के रहने वाले रामबीर, यामीन की शिकायत है कि गन्ने का दाम कम है। ऊपर से शामली चीनी मिल पर किसानों का पिछले सत्र का ही 2023 का 210 करोड़ रुपये बकाया है। लिलौन और खेड़ी करमू के रहने वाले मनोज कुमार, अतुल सिंह कहते हैं कि उनके आसपास के गांवों से कारखानों और शामली शहर के गंदे नाले का पानी निकाला जाता है, जिसके कारण उनका रहना दूभर हो गया है। 
प्रमुख जातियां
जाट : 1.75 लाख
सैनी : 1.20 लाख
कश्यप : 1.32 लाख
गुर्जर : 1.30 लाख
ब्राह्मण : 60 हजार
ठाकुर : 45 हजार
वैश्य : 56 हजार
दलित : 2.10 लाख
गुर्जर मुस्लिम : 1.10
आंकड़े अनुमानित हैं।
2019 का चुनाव परिणाम
पार्टी    प्रत्याशी    वोट
भाजपा    प्रदीप चौधरी    5,66,961
सपा    तबस्सुम हसन    4,74,801
कांग्रेस    हरेंद्र मलिक    69,355 
उपचुनाव (2018)
पार्टी    प्रत्याशी    वोट
सपा-रालोद-कांग्रेस    तबस्सुम हसन    4, 81,183
मृंगाका सिंह    भाजपा    4,36, 564
कैराना के प्रमुख योद्धा


भाजपा ने फिर से प्रदीप चौधरी पर भरोसा जताया है। प्रदीप गुर्जर हैं और पिछली बार भी चुनाव जीते थे।

सपा ने इकरा हसन पर दांव लगाया है। इकरा की व्यक्तिगत छवि अच्छी है। परिवार का सियासी रसूख भी है।
बसपा ने कारोबारी श्रीपाल राणा को चुनावी मैदान में उतारा है। राणा यहां के चुनावी मैदान में नए हैं।

छुट्टा पशु बड़ी समस्या
बार-बार मांग के बावजूद बकाया गन्ना मूल्य भुगतान, छुट्टा पशुओं से लोगों को निजात नहीं दिलाई जा रही। इससे लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस बार दोनों मुद्दे चुनाव में प्रभावी रहेंगे।-कालिंदर मलिक, जिलाध्यक्ष, भाकियू शामली

गुर्जर हर पक्ष के लिए अहम
यहां हिंदू मुस्लिम, दोनों गुर्जर अहम हैं। पहले मुस्लिम गुर्जर भी इस खाप के मुखिया रहे। मेरा कहना यही है कि जो भी देश के काम आए, समाज के लिए काम करे, सुख-दुख में आपका सहभागी बने