इस सीट पर भाजपा ने रोके कदम... सपा-बसपा भी चुप; बृजभूषण शरण ने टिकट न मिलने का इन्हें ठहराया जिम्मेदार

सरयू की लहरों से जवां कैसरगंज संसदीय क्षेत्र की आंखें थक गईं हैं। सियासत में कभी हनक रखने वाले क्षेत्र के मैदान में सूनापन सबको अखर रहा है।

इस सीट पर भाजपा ने रोके कदम... सपा-बसपा भी चुप; बृजभूषण शरण ने टिकट न मिलने का इन्हें ठहराया जिम्मेदार

सरयू की लहरों से जवां कैसरगंज संसदीय क्षेत्र की आंखें थक गईं हैं। सियासत में कभी हनक रखने वाले क्षेत्र के मैदान में सूनापन सबको अखर रहा है। नेताओं के कद की पहचान बढ़ाने वाला रण खाली है। न रंग है और न ही रौनक। बस कयास है। कौतूहल है। किस्से हैं और करामात की उम्मीद भी। नहीं है तो बस कोलाहल।

वक्त की मार और चुनावी समीकरण की साध देखिए कि यहां के लिए दलों को लड़ाके ही खोजे नहीं मिल रहे। हर बार जारी होने वाली सूची में दावेदार तय होने की चर्चा होती है, लेकिन हाथ लगता है इंतजार। टिकट के इस दांव से दबदबे का दम ही घुटने लगा है।


भाजपा ने तो मानों कदम ही रोक रखे हैं, लेकिन सपा व बसपा को भी कुछ सूझ नहीं रहा, जबकि तीनों दलों में लड़ाके दस्तक दे चुके हैं। पर ठौर नहीं मिल रही है। कैसरगंज का मैदान अभी टिकट के दांव में ही उलझा हुआ है। 

बाढ़ का दंश, दावेदारों का सूखा
ऐसा पहली बार हो रहा है कि पार्टियों के हाथ रुके हुए हैं। अब तो कैसरगंज के माझा से लेकर उपरहर क्षेत्रों में इसकी चर्चाएं शुरू हो गईं हैं। हर साल बाढ़ का दंश झेलने वाले क्षेत्र में दावेदारों के सूखे से बेचैनी बढ़ गई है। रामगढ़ गांव के शिवाकांत कहते हैं कि यहां अब पार्टियों की देरी खल रही है। 

हर क्षेत्र में प्रत्याशी तय हैं और प्रचार हो रहा है। यहां तो कोई पूछने वाला ही नहीं है। भौरीगंज के ओमप्रकाश कहते हैं कि जिसे भी देना हो टिकट दे देना चाहिए था। इस तरह हर बार कोई नाम न आना अच्छा नहीं लगता। कम से कम यहां भी लोग संपर्क करते। दावेदार तय न होने से सियासी माहौल बन ही नहीं रहा। पूरे क्षेत्र में अजीब सा सन्नाटा है। 

भाजपा का तो ठीक, सपा-बसपा की लाचारी क्यों
मतदाता इस बात को लेकर भी चौंके रहे हैं कि भाजपा में विपरीत परिस्थितियां हो सकती हैं, जिससे देरी हो रही है। सपा व बसपा आखिर क्यों चुप्पी साधे हैं। इन दोनों पार्टियों की आखिर क्या मजबूरी है। यह बात गले नहीं उतर रही है कि पहले भाजपा से प्रत्याशी तय हो तो अन्य दल फैसला लेंगे।  

समीकरण में भाजपा का दांव अहम
कैसरगंज का समीकरण ऐसा है कि भाजपा से प्रत्याशी तय होने के बाद ही अन्य दलों की राह आसान होगी। सपा के एक नेता कहते हैं कि यहां प्रत्याशी का चयन स्थानीय समीकरण के लिहाज से होना है। 2009 के पहले की स्थितियां दूसरी होती थीं, उस समय बाराबंकी का क्षेत्र जुड़ा था। ऐसे में सपा बेनी प्रसाद वर्मा पर दांव चलती थी।

2009 के बाद तरबगंज, करनैलगंज, कटरा व पयागपुर जुड़ जाने से नया समीकरण बना है। ऐसे में भाजपा की चाल से ही पार्टी प्रत्याशी तय करेगी। भाजपा ने क्षत्रिय दिया तो सपा ब्राह्मण प्रत्याशी उतारेगी। बसपा के बारे में भी चर्चा है कि वह भी भाजपा व सपा के कदमों पर निगाह टिकाए है। फिलहाल प्रत्याशी तय न होने से चुनावी माहौल से उल्लास नदारद है। 

विधायकों ने भी साध रखी है चुप्पी, कुछ बोलते ही नहीं बन रहा
कैसरगंज संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभाएं हैं, जिनमें चार विधायक भाजपा के व एक सपा के हैं। प्रत्याशी तय न होने से विधायकों ने भी चुप्पी साध रखी है। वह कुछ बोलने से भी कतरा रहे हैं। पार्टी लाइन से हटकर कहीं कोई बात न हो जाए। इससे कुछ बोलते नहीं बन रहा। टिकट में देरी पर हाईकमान की दुहाई देकर लोगों को आश्वासन की घुट्टी दे रहे हैं।

भाजपा के तो दो विधायकों का नाम ही दावेदारों में चल रहा है, जिससे वह अलग ही धर्मसंकट में फंसे हैं। ऐसे में वह भी चाहते हैं कि जल्दी टिकट घोषित हो जाए तो उनको राहत मिले। यही हाल भाजपा व सपा के जिम्मेदार नेताओं का भी है। जनता के बीच जाने पर हो रहे टिकट के सवाल को पार्टी की नीतियों और उपलब्धियों के बहाने टरका रहे हैं।
 
प्रमुख राजनीतिक दलों का वोट प्रतिशत
 
वर्ष    चुनाव    भाजपा    सपा    बसपा    कांग्रेस
2009    लोस    21.3    34.7    21.9    12.9
2014    लोस    40.4     32.2     15.5     6.1
2019    लोस    60    नहीं लड़े     33     3.8
बृजभूषण शरण सिंह ने तोड़ी चुप्पी
कैसरगंज से भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह ने टिकट न मिलने का ठीकरा मीडिया पर फोड़ा है। उनका कहना है कि मीडिया की वजह से उन्हें अब तक टिकट नहीं मिला। उन्होंने कहा- हम भाजपा से बड़े नहीं हैं। टिकट के सवाल पर बोले- हो सकता है कि इसके पीछे भाजपा की कोई रणनीति हो।

 
वह सोमवार को मनकापुर राजघराने के कुंवर विक्रम सिंह के निधन पर शोक जताने मंगल भवन पहुंचे थे। सांसद ने कुंवर विक्रम के परिजनों से मुलाकात की। इसके बाद मीडिया से मुखातिब हुए। कहा कि टिकट मिलना न मिलना हमारी चिंता नहीं है। उन्होंने कहा कि मैंने कभी मजहब के आधार पर राजनीति नहीं की। सन 1989 में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। मुलायम सिंह उस वक्त मुख्यमंत्री थे। 

 
अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस होने पर सबसे पहले मुझे गिरफ्तार किया गया था। सीबीआई ने भी सबसे पहले अरेस्ट किया था। लेकिन इन सबके बावजूद जब तक मुलायम सिंह यादव जिंदा रहे उनसे अच्छे संबंध रहे। हर बात राजनीति से जोड़कर नहीं देखनी चाहिए। टिकट के सवाल पर कहा कि यह हमारी चिंता है, आपकी नहीं। राहुल गांधी व अखिलेश यादव पर बोलने से सांसद बचते नजर आए।