माघ मेला 2026 से बदलेगी ग्रामीण तस्वीर; आस्था का मेला, आत्मनिर्भरता का मंच

आग लगने की घटनाओं को देखते हुए मेला प्रशासन ने शिविरों में बिजली के हीटर और छोटे एलपीजी सिलेंडरों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। इस फैसले के बाद मिट्टी के चूल्हों और गोबर के उपलों की मांग अचानक बढ़ गई है, जिसका सीधा लाभ ग्रामीण महिलाओं को मिल रहा है।

माघ मेला 2026 से बदलेगी ग्रामीण तस्वीर; आस्था का मेला, आत्मनिर्भरता का मंच

प्रयागराज में त्रिवेणी के पावन तट पर 3 जनवरी 2026 से शुरू होने जा रहे माघ मेला–2026 की तैयारियां अब अंतिम चरण में हैं। दो सप्ताह बाद शुरू होने वाला यह धार्मिक आयोजन न सिर्फ आस्था और अध्यात्म का केंद्र बनेगा, बल्कि लाखों लोगों के लिए रोजगार और जीविका का बड़ा माध्यम भी साबित हो रहा है।

आग लगने की घटनाओं को देखते हुए मेला प्रशासन ने शिविरों में बिजली के हीटर और छोटे एलपीजी सिलेंडरों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। इस फैसले के बाद मिट्टी के चूल्हों और गोबर के उपलों की मांग अचानक बढ़ गई है, जिसका सीधा लाभ ग्रामीण महिलाओं को मिल रहा है।

मेला क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले 27 गांवों में पशुपालन से जुड़े करीब 15 हजार से अधिक ग्रामीण परिवार इस आयोजन से सीधे लाभान्वित हो रहे हैं। गंगा किनारे बसे गांवों में उपलों का नया बाजार विकसित हो गया है और अस्थायी मंडियां सजने लगी हैं।

माघ मेले का सबसे बड़ा लाभ महाकुंभ नगर क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांवों को मिल रहा है। खासकर ग्रामीण महिलाओं के लिए यह मेला आत्मनिर्भरता के नए अवसर लेकर आया है। पशुपालन और पारंपरिक कार्यों से जुड़ी महिलाएं इन दिनों उपले और मिट्टी के चूल्हे बनाने में जुटी हैं।