जानिये खरमास या मार्गशीर्ष मास में भाग्य को सौभाग्य में बदला जा सकता है किस मन्त्र का जप विशेष फलदायी है

यह कालखंड जीव और जीवन के लिए पंचांग के अनुसार उत्तम समय नहीं माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि लगातार परिक्रमा करते-करते सूर्य देव के रथ के अश्‍व थक जाते हैं। उन्‍हें थकता हुआ देख सूर्य देव उन्‍हें आराम करने के लिए सरोवर के पास छोड़ देते है और खर को रथ में बांधकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने लगते है । दक्षिणायन का आखिरी महीना ही खरमास होता है। मकर संक्रांति से देवताओं का दिन शुरू हो जाता है. इसी दिन खरमास समाप्त हो जाता है।

जानिये खरमास या मार्गशीर्ष मास में भाग्य को सौभाग्य में बदला जा सकता है किस मन्त्र का जप विशेष फलदायी है

दिसंबर का उत्तरार्ध और जनवरी का पूर्वार्ध भारतीय मान्यताओं में खरमास या मार्गशीर्ष कहलाता है। मार्गशीर्ष का महीना स्वयं में अति विशिष्ट है । यह माह आंतरिक कौशल और बौद्धिक चातुर्य से शीर्ष पर पहुंचने का मार्ग प्रकट करता है । मार्गशीर्ष मास को अगहन मास भी कहते हैं। मार्गशीर्ष और पौष का संधि काल खरमास में बीतता है । धार्मिक मान्यता के अनुसार, खरमास के दौरान सूर्य की चाल धीमी होती है इसलिए इस दौरान किया गया कोई भी कार्य शुभ फल प्रदान नहीं करता है। 

सनातन ग्रंथो के अनुसार सूर्यदेव ब्रह्मांड की परिक्रमा करते रहते हैं, ऐसे में उन्‍हें रुकने की अनुमति नहीं है। सरल शब्‍दों में कहें तो सूर्य देव प्रकृति के अधीन होकर कार्य करते हैं। इस कारण सूर्य देव नहीं रुक सकते यदि वे रुकते हैं तो पूरा ब्रह्मांड ही रुक जाएगा। जिससे समस्‍त लोक में हाहाकर मच जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि लगातार परिक्रमा करते-करते सूर्य देव के रथ के अश्‍व थक जाते हैं। उन्‍हें थकता हुआ देख सूर्य देव उन्‍हें आराम करने के लिए सरोवर के पास छोड़ देते है और खर को रथ में बांधकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने लगते है । ऐसा करने से जब खर के कारण सूर्यदेव के रथ की गति भी धीमी हो जाती है, ऐसे में वे दोबारा अश्‍वों को बांध परिक्रमा शुरू कर देते हैं। इसी कारण प्रत्‍येक वर्ष खरमास लगता है।

यह कालखंड जीव और जीवन के लिए पंचांग के अनुसार उत्तम समय नहीं माना जाता है। शुभ कार्य तो इस दौरान वर्जित हो जाते हैं। धनु राशि की यात्रा और पौष मास के संयोग से देवगुरु के स्वभाव में उग्रता आने के कारण इस मास के दौरान वैवाहिक कार्य, गृह निर्माण और गृह प्रवेश, बच्चों के मुंडन संस्कार, नामकरण संस्कार आदि मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं और इन दौरान ये सभी शुभ कार्य करने पर अशुभ सिद्ध हो सकते हैं। इस मास में भी कुछ योग होते हैं, जिनमें अति आवश्यक परिस्थितियों में कुछ कार्य किए जा सकते हैं. ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड पंडितों का कहना है कि पौष मास के समय अति आवश्यक परिस्थिति में सर्वार्थ सिद्ध योग, रवि योग, गुरु पुष्य योग अमृत योग में विवाह के कर्मों को छोड़कर अन्य शुभ कार्य किए जा सकते हैं. लेकिन ये शुभ कार्य अति आवश्यक परिस्थिति में ही कर सकते हैं | दक्षिणायन का आखिरी महीना ही खरमास होता है. मकर संक्रांति से देवताओं का दिन शुरू हो जाता है. इसी दिन खरमास समाप्त हो जाता है.

जब गुरु की राशि धनु में सूर्य प्रवेश करते हैं, तब खरमास का योग बनता है. वर्ष में दो बार मलमास लगता है. पहला धनुर्मास और दूसरा मीन मास कहलाता है. इसका मतलब है कि सूर्य जब-जब बृहस्पति की राशियों- धनु और मीन में प्रवेश करता है, तब-तब खरमास या मलमास लगता है क्योंकि सूर्य के कारण बृहस्पति निस्तेज हो जाते हैं. इसलिए सूर्य के गुरु की राशि में प्रवेश करने से विवाह आदि कार्य निषेध माने जाते हैं. विवाह और शुभ कार्यों से जुड़ा यह नियम मुख्य रूप से उत्तर भारत में लागू होता है जबकि दक्षिण भारत में इस नियम का पालन कम किया जाता है. चेन्नई, बेंगलुरू जैसे दक्षिण भारत के कई हिस्सों में शादी-विवाह इस दोष से मुक्त माने जाते हैं.

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा बताया गया है कि भगवान सूर्यदेव में स्वयं ही सात ग्रहों के दुष्प्रभावों को नष्ट करने की सामर्थ्य हैं। अतः इस अवधि में बाह्य जगत के बाहरी कर्मों से निरमुक्त होकर स्वयं में प्रविष्ट होकर मंत्र साधना, यज्ञ ,जलदान, दीपदान करके व्यक्ति जीवन में उत्कर्ष को प्राप्त करता है । जब भी सूर्य, गुरु की राशि में आते हैं तो यह समय सांसारिक कार्यों से मन को हटा आध्यात्मिक कार्यों में लगाने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय माना जाता है। ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार गुरु और सूर्य मित्र ग्रह होते हैं। सूर्य आत्‍मा का कारक ग्रह है, जबकि गुरु धर्म के कारक ग्रह हैं, जिसे भगवान विष्‍णु का प्रतिनिधि माना जाता है।

इस दौरान दैविक, दैहिक और भौतिक कष्टों से मुक्ति के लिए भगवान सूर्यदेव की पूजा ही कारगर मानी जाती है। मोक्ष की इच्छा रखने वाले लोगों को इस दौरान अपने गुरु की सेवा, ध्यान, उपासना, अंतर्मन में झांकने का प्रयत्न और आकाशीय ध्वनि आदि सुनने का प्रयत्न करते रहना चाहिए। मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक लोगों को इस दौरान अपने गुरु की सेवा करनी चाहिए।

मार्गशीर्ष या खरमास में किए गए दान आदि का कई गुणा पुण्य प्राप्त होता है। इस मास को आत्म की शुद्धि से भी जोड़कर देखा जाता है। अधिक मास में व्यक्ति को मन की शुद्धि के लिए भी प्रयास करने चाहिए। आत्म चिंतन करते मानव कल्याण की दिशा में विचार करने चाहिए। सृष्टि का आभार व्यक्त करते हुए अपने पूर्वजों का भी धन्यवाद करना चाहिए, ऐसा करने से जीवन में सकारात्मकता को बढ़ावा मिलता है। मनुष्य अपने जीवन में आत्मा के कल्याण का प्रयास करें। अपनी आत्मा के कल्याण के लिए सदैव प्रय|शील रहें। आत्मकल्याण के मार्ग के बिना मनुष्य कभी भी सिद्ध नहीं बन सकता है। यदि जीवन में आत्म सुख को पाना है तो सर्वप्रथम अपनी आत्म कल्याण का विचार करना पड़ेगा।

इस खरमास में प्रत्येक साधक को सूर्य एवं भगवान श्री विष्णु की आराधना करनी चाहिए । इस मास की एकादशी को उपवास रखकर भगवान विष्णु को तुलसी के पत्तों के साथ खीर का भोग व फिर से यज्ञ करना चाहिए ।
इस मास में भगवान विष्णु का अभिषेक और उनके द्वादश अक्षर मंत्र का जप करना चाहिए।
"ॐ नमो भगवते वासुदेवाय..।" 
यह श्रीकृष्णजी का द्वादश मंत्र है। इस मास में श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, हरिवंश पुराण और एकादशी महात्म्य कथाओं के श्रवण से सभी मनोरथ पूरे होते हैं। जप के बाद दशांश हवन से अधिक लाभ प्राप्त होता है ।

पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास माना जाता है ,पूरे मास में पीपल की पूजा करें ,दीप जलाएं तथा पीपल का वृक्ष लगाएं । धार्मिक स्थलों पर जाकर दर्शन करें ,यथाशक्ति दान करें /करना चाहिए तथा तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान व दान करना संभव हो तो इसका विशेष महत्व है ।


कार्यक्षेत्र में उन्नति के लिए खर मास की नवमी तिथि को कन्याओं को भोजन करवाएं वस्त्र आभूषण दान में दें । ऐश्वर्या और सम्मान के लिए सूर्य की उपासना ध्यान और आकाशीय ध्वनि सुनने का अभ्यास अनिवार्य रूप से करना चाहिए ।
खरमास में की गई सूर्य उपासना व्यक्ति का जीवन और भाग्य बदलने में सक्षम होता है।