जानिए क्यों गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते है, क्यों च्नद्र दर्शन इस दिन वर्जित बताया गया क्या है कथा

भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी अर्थात गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा का दर्शन करने से झूठा कलंक अथवा आक्षेप लगने की संभावना होती है।

जानिए क्यों गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते है, क्यों च्नद्र दर्शन इस दिन वर्जित बताया गया क्या है कथा

देश भर में 31 अगस्त को विघ्नहर्ता पार्वती नंदन भगवान गजानन की गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी. इस दिन घर-घर में गणपति बप्पा की स्थापना होती है. इन 11 दिनों में गणेश जी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है. ये पर्व खासतौर से महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. इस पर्व के दौरान लोग अपने घर में गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते हैं और चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन किया जाता है. 

जानिए क्यों गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहते है, क्यों च्नद्र दर्शन इस दिन वर्जित बताया गया क्या है कथा-NewsAsr

शास्त्रीय वचनों के अनुसार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी अर्थात गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा का दर्शन करने से झूठा कलंक अथवा आक्षेप लगने की संभावना होती है। यदि गलती से चंद्रमा का दर्शन हो जाए तो उसके पश्चात अपने लिए एक कंकर उठाकर चंद्रमा की ओर फेंकना चाहिए। इसीलिए इसका नाम पत्थर चौथ या कलंक चौथ भी कहलाता है। 

प्रथम पूज्य देव गणपति अपनी बुद्धि, शक्ति और लगन के साथ ही अपने भोजन प्रेम के लिए भी अति प्रसिद्ध हैं। अपनी काया के अनुरूप ही गणेश जी स्वादिष्ट भोजन भरपूर मात्रा में लेना पसंद करते हैं। लड्डू और मोदक उनके प्रिय भोज्य पदार्थ माने जाते हैं। इसी भोजन के कारण गणपति के जीवन में एक ऐसी घटना घटी, जिसने चंद्रमा को श्रापित कर दिया।

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यह घटना गणेश चतुर्थी की रात की है। गणेश जी के जन्म की रात थी और उन्हें पेटभर कर अपने प्रिय व्यंजन लड्डू और मोदक खाने को मिले थे। प्रिय और स्वादिष्ट भोजन मात्रा से अधिक हो ही जाता है, सो गणपति भी खूब डटकर पेट पूजा कर चुके थे और भोजन पचाने के लिए अपने वाहन मूषकराज पर बैठ घूमने निकल पड़े थे। एक तो गणपति जी वैसे ही भारी थे, दूसरे, उस दिन डटकर भोजन करने के कारण वे और अधिक भारी मालूम पड़ रहे थे।

मूषकराज के फिसलने के साथ ही गणपति गिर गए छोटे से मूषकराज ने अपनी भरपूर शक्ति लगाकर उन्हें साधे रखने का भरपूर प्रयत्न किया। थोड़ी देर बाद मूषकराज की शक्ति जवाब दे गई और उनका संतुलन बिगड़ गया। मूषकराज के फिसलने के साथ ही गणपति भी मैदान में धाराशायी हो गए।यहां तक तो सब ठीक था, गणपति को गिरते हुए किसी ने नहीं देखा था, पर चतुर्थी का चांद आकाश में चमक रहा था। इतने बड़े पेट के साथ गणपति को चारों खाने चित्त होते देख चंद्रमा अपनी हंसी नहीं रोक पाए और ठहाका मारकर हंस पड़े।

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चंद्रमा की हंसी ने आग में घी का काम किया गणपति वैसे ही गिरने से लज्जित और कु्रद्ध थे, तिस पर चंद्रमा की हंसी ने आग में घी का काम किया। गणपति जी क्रोध में भरकर उठे और तुरंत ही चंद्रमा को श्राप दे दिया कि जो व्यक्ति चतुर्थी के चांद के दर्शन करेगा, वह अपयश का भागी होगा।

चंद्र के घबरा गए और उस शाप की मुक्ति के लिए भगवान शंकर की तपस्या की। तब शंकर भगवान जी उनसे प्रसन्न हो गये और चन्द्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया। इसके पश्चात चंद्रदेव ने गणेश जी शाप मुक्ति का उपाय पूछा। चंद्रमा की अनुनय-विनय करने के बाद गणेश जी ने कहा मैं केवल आपको शाप से मुक्त होने का उपाय बताता हूं। केवल भाद्रपद मास की गणेश चतुर्थी को जिस दिन आप मेरा अपमान किया था उस तिथि को तुम्हारे दर्शन करने पर लोगों को झूठा आरोप या कलंक लग सकता है। शेष दिनों में आप जिस गति से घटोगे फिर उसी गति से बढ़कर पूर्णता प्राप्त करोगे।

यदि गणेश चतुर्थी पर गलती से चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो बिल्कुल भी घबराएं नहीं. अगर इस दोष को दूर करना है तो सबसे पहले सभी बाधा को दूर करने वाले गणपति की फल-फूल चढ़ाकर पूजा करें. गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें। भविष्य में लगने वाले कलंक से बचने के लिए नीचे दिए गए मंत्र का पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ पढ़ें. निश्चित ही आपके जीवन में सुख समृद्धि आएगी.

सिंह: प्रसेन मण्वधीत्सिंहो जाम्बवता हत:। 

सुकुमार मा रोदीस्तव ह्येष: स्यमन्तक:।। 

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कहा जाता है भगवान श्री कृष्ण ने चतुर्थी का चांद देख लिया था. इसलिए उनको स्यमंतक मणि का झूठा कलंक लगा था. 

इस कथा को भी सुनना लाभप्रद होता है 

भगवान सूर्य ने सत्राजीत की भक्ति और उपासना से प्रसन्न होकर स्यमंतक मणि सत्राजीत को दी थी. यह मणि लेकर जब सत्राजित श्री कृष्ण दरबार में पहुंचे तो भगवान कृष्ण ने मणि उग्रसेन को देने की बात कही, लेकिन सत्राजित ने मणि उन्हें ना देकर अपने भाई प्रसेनजीत को दी. 

प्रसेनजीत एक दिन शिकार के लिए जंगल गए थे. वहां शेर ने उसको मार डाला और गुफा में जाने लगा. वहींं मौजूद जामवंत शेर को मार कर मणि अपने घर ले गए. प्रसेनजीत जब वापस नहीं लौटा तो सत्राजीत ने भगवान कृष्ण पर प्रसेनजीत को मारकर मणि छीनने का आरोप लगाया. 

अपने ऊपर लगे झूठे कलंक को मिटाने के लिए श्री कष्ण जंगल गए और उन्होंने देखा कि जामवंत की पुत्री जामवंती के पास मणि हैं. उन्होंने जामवंती से मणि वापस मांगी. लेकिन जामवंत नहीं माने और भगवान श्री कृष्ण से युद्ध करने लगे. 21 दिन के भीषण युद्ध के बाद जामवंत भगवान कृष्ण को नहीं हरा पाए और उन्हें आभास हो गया कि यह भगवान विष्णु के अवतार हैं. तब उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह भगवान श्रीकृष्ण से किया और उन्हें मणि वापस दी.

जय श्री गणेश