इस कथा को सुने बिना अधूरा रहता है महाशिवरात्रि व्रत सरल शब्दों में पूरी महाशिवरात्रि कथा हिंदी में

सनातन धर्म के शास्त्रों और धर्म ग्रंथो के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान कराने का विधान है. इसके साथ ही व्रती को पूजा, अर्घ्य, जप और कथा सुननी चाहिए और स्तोत्र पाठ करना चाहिए. अंत में भगवान शिव से भूलों के लिए क्षमा जरूर मांगनी चाहिए.

इस कथा को सुने बिना अधूरा रहता है महाशिवरात्रि व्रत सरल शब्दों में पूरी महाशिवरात्रि कथा हिंदी में

सनातन धर्म के शास्त्रों और धर्म ग्रंथो के अनुसार शिवलिंग स्नान के लिये रात्रि के प्रथम प्रहर में दूध, दूसरे में दही, तीसरे में घृत और चौथे प्रहर में मधु, यानी शहद से स्नान कराने का विधान है. इसके साथ ही व्रती को पूजा, अर्घ्य, जप और कथा सुननी चाहिए और स्तोत्र पाठ करना चाहिए. अंत में भगवान शिव से भूलों के लिए क्षमा जरूर मांगनी चाहिए.

 प्राचीन काल में एक गुरुद्रुह नामक भील  बहेलिया  जंगली जानवरों का शिकार कर परिवार का पालन करता था ।

संयोग से शिव चतुर्दशी को वह वन में आखेट को गया । वह सारे दिन मारा - मारा फिरता रहा , किन्तु कोई भी शिकार नहीं मिला ।

अंत में शिकार की टोह में वह जल - पात्र भरकर बेल के एक वृक्ष पर चढ़ गया । उस बेल - वृक्ष के नीचे एक शिवलिङ्ग स्थापित था ।

जब रात्रि का प्रथम पहर बीता तो एक हिरनी प्यास से व्याकुल हो सरोवर  पर आयी ।

उसे देखकर बहेलिया प्रसन्न हुआ तथा उसने हिरनी का वध करने हेतु अपने धनुष पर बाण चढ़ाया ।

धनुष पर बाण संधान के समय कुछ बेल पत्र और जल नीचे शिवलिङ्ग पर गिर गया । इस प्रकार प्रथम पहर का शिवार्चन अनजाने में ही सम्पन्न हो गया ।

इधर हिरनी भयभीत हुयी और बहेलिये से कहने लगी कि हे व्याध ! मेरी आपसे एक प्रार्थना है कि इस समय मेरे सब बच्चे अकेले हैं । मैं उन्हें एक बार देख आऊँ , तब आप मेरा वध कर लेना ।

उस हिरनी की प्रार्थना सुनकर भी जब बहेलिया नहीं माना तो हिरनी बहुत डर गयी और बोली कि हे  व्याध ! आपके समक्ष मैं शपथ लेकर कहती हूँ कि मैं वापस अवश्य लौटूंगी । इतना कहकर वह चली गयी ।

 इधर बिना नींद के व्याध ने शिवरात्रि का प्रथम पहर व्यतीत कर लिया । कुछ समय बाद दूसरी हिरनी उसको खोजती हुई जल पीने को वहाँ आ पहुँची ।

उसका वध करने को तत्पर बहेलिये ने जैसे ही धनुष खींचा कि कुछ बेलपत्र और जल पुनः शिवलिङ्ग पर गिर गया । इस प्रकार अनजाने में ही बहेलिये द्वारा द्वितीय पहर का शिव पूजन हो गया ।

धनुष की आवाज सुनकर हिरनी ने बहेलिये को देखा और वह भी लौटने का आश्वासन देकर चली गयी । काफी समय गुजरने पर भी जब हिरनियाँ वापिस नहीं लौटीं तो बहेलिया उनकी खोज करने लगा ।

इतने में ही पुष्ट शरीर वाले हिरन को अपनी ओर आते देखकर बहेलिये ने धनुष बाण का संधान किया । फलस्वरूप कुछ बेलपत्र और जल तीसरी बार भी शिवलिङ्ग पर गिर गया । इस प्रकार अनजाने में ही बहेलिये द्वारा तीसरे पहर का शिर्वाचन भी सम्पन्न हो गया ।

धनुष की टंकार सुनकर हिरण ने पूछा कि हे व्याध ! अन्तत : तुम करना क्या चाहते हो ? बहेलिया बोला कि मैं तेरा वध करके अपने परिवार के लिये आहार की व्यवस्था  करना चाहता हूँ ।

पहले तो हिरण गिड़गिड़ाया , फिर वह बहेलिये को लौटने का पूर्ण आश्वासन देकर चला गया । कुछ समय बाद सबको एक साथ आया देखकर बहेलिया बड़ा प्रसन्न हुआ तथा

अपने धनुष पर बाण का संधान किया । तभी कुछ बेलपत्र और जल फिर नीचे शिवलिङ्ग पर गिर गया तथा अनजाने में चतुर्थ पहर का शिव पूजन भी सम्पन्न हो गया ।

इस पूजन के प्रभाव से बहेलिये के समस्त पाप नष्ट हो गये । शिव पूजन के प्रभाव से उसे  देव - दुर्लभ ज्ञान प्राप्त हुआ

फलस्वरूप वह कहने लगा कि हे मृगवरों ! आप सब सत्यनिष्ठ , परम धन्य हो । अब आप सब अपने निवास स्थान को जाओ मैं आप लोगों को नहीं मारूँगा ।

तब भगवान शंकर उस पर अति प्रसन्न हुये तथा अपने स्वरूप के दर्शन दिये ।

बहेलिया बोला कि हे प्रभो ! मुझे सभी कुछ प्राप्त हो गया है , यह कहकर वह शिवजी के चरणों में गिर पड़ा

भगवान शंकर ने अतिशय प्रीति से भरकर उसका नाम गुह रक्खा और उसे दिव्य वर दिया ।

शिवजी बोले- तेरी वंश परम्परा कभी नष्ट नहीं होगी त्रेतायुग में भगवान राम स्वयं तेरे घर आयेंगे । इसमें कुछ भी सन्देह नहीं है । मेरे भक्तों पर श्रीराम विशेष कृपा करते हैं ।

तुम उनकी सेवा में चित्त लगाकर मोक्ष को प्राप्त करोगे । फिर उन सब निरीह प्राणियों ने भी साक्षात् शिव के दर्शन प्राप्त कर मोक्ष को प्राप्त किया । 

#महाशिवरात्रिव्रतकथा #शिवरात्रिकीकहानी # महाशिवरात्रिकथाहिंदीमें #mahashivratri2022 # mahashivratrivratkathahindi