वैज्ञानिको को पता चल गया ओमिक्रॉन का खास लक्षण जानिए और सतर्क रहिये

दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिक डॉक्टर रेयान नोच के मुताबिक ओमिक्रॉन वेरिएंट से पीड़ित मरीजों की जांच में कुछ खास चीजों की पहचान की गई है। शुरुआत में माना जा रहा था कि संक्रमण से लोग मामूली बीमार पड़ रहे हैं। लेकिन इनमें से अधिकतर 10 से 30 साल की उम्र तक के युवा थे। इनमें छात्र थे जिनका लोगों से मिलना-जुलना अधिक था। हमारा इम्यून सिस्टम अभी भी वायरस के सैंकड़ों हिस्से पहचानता है। हालांकि इसके छह हिस्से बेहद महत्पूर्ण हैं और ओमिक्रॉन में इनमें से तीन में बदलाव है, इसलिए ये पहले के वेरिएंट के मुक़ाबले कहीं अधिक संक्रामक हैं ।

वैज्ञानिको को पता चल गया ओमिक्रॉन का खास लक्षण जानिए और सतर्क रहिये

कोरोना वायरस का पहला मामला क़रीब 18 महीनों पहले मिला था, तब से लेकर अब तक इसमें कई म्यूटेशन्स आ चुके हैं। अल्फ़ा के मुक़ाबले डेल्टा अधिक घातक था, ऐसे में ओमिक्रॉन को लेकर चिंता बेवजह नहीं। 

कोरोना का नया ओमिक्रॉन वेरिएंट दुनिया की चिंता बढ़ा रहा है। अब तक 77 देशों में यह वेरिएंट पहुंच चुका है। भारत में भी 11 राज्यों में इस वेरिएंट के कुल 110 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जिसके बाद देश में इलाज के इंतजामों को और मजबूत करने पर ध्यान दिया जा रहा है। केंद्रीय और राज्यों के अधिकारियों के मुताबिक देश में महाराष्ट्र में इस स्वरूप के 40, दिल्ली में 22, राजस्थान में 17, कर्नाटक में आठ, तेलंगाना में आठ, गुजरात में पांच, केरल में सात, आंध्र प्रदेश, चंडीगढ़, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में एक-एक मामला सामने आया है. देश में सबसे पहले ओमीक्रोन के दो मामले कर्नाटक में दो दिसंबर को आए थे। 

दक्षिण अफ्रीका के वैज्ञानिक डॉक्टर रेयान नोच के मुताबिक ओमिक्रॉन वेरिएंट से पीड़ित मरीजों की जांच में कुछ खास चीजों की पहचान की गई है। रिसर्च में पता चला कि संक्रमण के शुरुआती दौर में पीड़ितों के गले में खराश शुरू हुई। इसके बाद उन्हें सूखी खांसी, नाक बंद होने और मांशपेशियों व कमर के निचले हिस्से में जकड़न की दिक्कत हुई। लोगों ने इसे सामान्य जुकाम समझकर उपेक्षित कर दिया, लेकिन बाद में जब जांच हुई तो पता चला कि वे कोरोना के ओमिक्रॉन वेरिएंट से पीड़ित थे। डॉ नोच ने कहा कि इनमें से अधिकतर लक्षण हल्के होते हैं, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि ओमिक्रॉन कम घातक है। 

प्रोफ़ेसर रिचर्ड लेज़ल्स, दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वाज़ुलू-नटाल में संक्रामक रोग विशेषज्ञ हैं। वो बताते हैं कि हाल के महीनों में बड़ी संख्या में लोग या तो कोविड से ठीक हुए हैं या उन्हें टीका दिया जा रहा है. ऐसे में माना जा सकता है कि संक्रमण फिर से हुआ तो ये लोग गंभीर बीमारी से बच पाएंगे। 

वो कहते हैं, 

"शुरुआत में माना जा रहा था कि संक्रमण से लोग मामूली बीमार पड़ रहे हैं। लेकिन इनमें से अधिकतर 10 से 30 साल की उम्र तक के युवा थे। इनमें छात्र थे जिनका लोगों से मिलना-जुलना अधिक था।  हमें समझना होगा कि पूरी तरह वैक्सीनेटेड न होने पर भी वो गंभीर रूप से बीमार नहीं होंगे। जून-जुलाई में जब डेल्टा की लहर आई थी तब दोबारा संक्रमण की दर में कुछ ख़ास बढ़त नहीं देखी गई थी।  लेकिन अभी तस्वीर अलग है. ओमिक्रॉन की लहर की शुरूआत में ही विशेषज्ञ दोबोरा संक्रमण के जोख़िम में तीन गुना बढ़ोतरी देख रहे हैं।  इसका मतलब ये है कि ये वेरिएंट लोगों की उस इम्यूनिटी को भी भेद पा रहा है जो लोगों को पहले हुए संक्रमण से मिली थी। "

वैज्ञानिक जूलियत पुलियम ने कहा कि अभी तक की जांच से पता चला कि यह वेरिएंट कम खतरनाक है।  यानी कि डेल्टा और डेल्टा प्लस वेरिएंट की तुलना में यह लोगों की कम जान ले रहा है लेकिन इसकी संक्रमण दर सबसे ज्यादा है।  इस वेरिएंट से पीड़ित व्यक्ति 4-5 लोगों को संक्रमित कर रहा है।  जिसके चलते करीब आधी दुनिया तक यह वेरिएंट पहुंच चुका है। 

नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीज के मिशेल ग्रोम ने कहा कि बुधवार को दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन के तेजी से फैलने के बाद महामारी में देश में अब तक के सबसे अधिक संक्रमण दर्ज किए गए। उन्होंने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, 

“अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी नहीं हो रही है.” 

 नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर कम्युनिकेबल डिजीजकी एक अन्य सदस्य वसीला जसत ने कहा कि 

“रोजाना आने वाले कोरोना के मामलों में हम कुछ वृद्धि देख रहे हैं, लेकिन उसके मुकाबले मौतों में कम वृद्धि हुई है। ” 
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों की संख्या भी ‘पिछली लहर की तुलना में कम थी’ जिन्हें ऑक्सीजन की आवश्यकता हो।  

दक्षिण अफ्रीका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ क्वाज़ुलू-नटाल में संक्रामक रोग विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर रिचर्ड कहते हैं, "लोग आपस में घुल-मिल रहे हैं, सार्वजनिक तौर पर अधिक लोगों के एक जगह इकट्ठा होने पर पाबंदी नहीं है।  देखा जाए तो वायरस को फैलने से रोकने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं किया जा रहा। लेकिन जो मुल्क अभी डेल्टा का क़हर झेल रहे हैं वहां पाबंदियां हैं।  डर ये है कि कहीं ऐसा न हो कि जब तक ओमिक्रॉन को फैलने से रोकने के लिए क़दम उठाए जाएं तब तक स्थिति बिगड़ जाए। "

प्रोफ़ेसर फ्रांस्वा बालू यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में जेनेटिक्स इंस्टीट्यूट के निदेशक हैं। वो कहते हैं, "हमारा इम्यून सिस्टम इस वायरस के सैंकड़ों हिस्से पहचान सकता है, लेकिन इसके छह ऐसे हिस्से हैं जो संक्रमण रोकने में महत्वपूर्ण होते हैं और स्पाइक प्रोटीन में हैं, ये वायरस को कोशिका से चिपकने में मदद करते हैं, अगर इनमें बदलाव आया तो हमारा इम्यून सिस्टम वायरस को नहीं पहचान पाएगा अगर एंटीबॉडी वायरस के इन हिस्सों को नहीं पहचान पाती तो संक्रमण का ख़तरा अधिक रहता है। हालांकि इसका मतलब ये नहीं कि व्यक्ति गंभीर रूप से बीमार पड़ेगा क्योंकि हमारा इम्यून सिस्टम अभी भी वायरस के सैंकड़ों हिस्से पहचानता है। हालांकि इसके छह हिस्से बेहद महत्पूर्ण हैं और ओमिक्रॉन में इनमें से तीन में बदलाव है, इसलिए ये पहले के वेरिएंट के मुक़ाबले कहीं अधिक संक्रामक हैं."

इस बीच, एक अध्ययन में यह कहा गया है कि कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन स्वरूप, डेल्टा और कोविड-19 के मूल स्वरूप की तुलना में 70 गुना तेजी से संक्रमित करता है, लेकिन इससे होने वाले रोग की गंभीरता काफी कम है। हांगकांग विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि ओमिक्रॉन, डेल्टा और मूल सार्स-कोवी-2 की तुलना में 70 गुना तेजी से संक्रमित करता है।  अध्ययन से यह भी प्रदर्शित होता है कि फेफड़े में ओमिक्रॉन से संक्रमण मूल सार्स-कोवी-2 की तुलना में काफी कम है, जिससे रोग की गंभीरता कम होने का संकेत मिलता है। 

वैज्ञानिक जूलियत पुलियम ने कहा कि यह ओमिक्रॉन वेरिएंट कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज लगवा चुके लोगों को भी संक्रमित कर रहा है. हालांकि उनमें बहुत मामूली लक्षण दिख रहे हैं।  वहीं कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों के लिए यह वेरिएंट ज्यादा कहर ढा सकता है।  इसलिए उन्हें बहुत सावधान रहने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इस वेरिएंट से निपटने में इलाज के इंतजामों को मजबूत करना और कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते रहना सबसे अच्छा उपाय हो सकता है। 

इसलिए कोविद प्रोटोकॉल्स का पूरी तरह से पालन कीजिये सतर्क रहिये सुरक्षित रहिये।