Diwali Festival मुहूर्त -दिवाली के उत्सवों पूजन के सभी मुहूर्त क्या है पूजन विधि और उनका महत्व कैसे मिलती है माता लक्ष्मी की कृपा

दीपावली का उत्सव, 5 दिनों तक चलता है। दक्षिण भारत और, उत्तर भारत में इस त्योहार को, अलग-अलग दिन और, तरीके से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में दिवाली के 1 दिन पहले, यानी नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन मनाया जाने वाला उत्सव, दक्षिण भारत के दिवाली उत्सव का, सबसे प्रमुख दिन होता है, जबकि उत्तर भारत में यह त्योहार, 5 दिन का होता है, जो धनतेरस से शुरू होकर, नरक चतुर्दशी, मुख्य पर्व दीपावली, गोवर्धन पूजा से होते हुए भाई दूज पर समाप्त होता है।

यह माना जाता है कि, धन की देवी लक्ष्मी, बहुत क्षणिक है और, यह केवल वहीं रहती है, जहां कड़ी मेहनत, ईमानदारी और कृतज्ञता हो। वह केवल वहीं रहती है, जहां 'सत्य', 'दान', 'तप', 'पराक्रम' और 'धर्म' हो। दीपावली एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ, प्रकाश की पंक्तियाँ होता है। भारतीय कैलेंडर के हिसाब से, यह त्यौहार, कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह पर्व, ज्ञान के प्रकाश का अज्ञानता के अंधेरे पर विजयी होने का प्रतीक है। कोरोना काल के दौरान, बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए, दीपावली के अवसर पर, किसी भी तरह के पटाखे जलाने पर, 7 से 30 नवंबर तक, पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। इस अवधि के दौरान, पटाखों को बेचने, खरीदने और जलाने पर पूरी तरह से रोक रहेगी। तो आइये इस बार क्रोध, ईर्ष्या,  भय, या जो भी नकारात्मकता, आपके मन में पिछले एक साल में जमा हो गई है, वह सभी आभासी  पटाखे के रूप में, जला देना चाहिए। तब आप प्रेम, शांति और आनंद के साथ, हल्कापन महसूस करेंगे|

 

दीपावली का उत्सव, 5 दिनों तक चलता है। दक्षिण भारत और, उत्तर भारत में इस त्योहार को, अलग-अलग दिन और, तरीके से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में दिवाली के 1 दिन पहले, यानी नरक चतुर्दशी का विशेष महत्व है। इस दिन मनाया जाने वाला उत्सव, दक्षिण भारत के दिवाली उत्सव का, सबसे प्रमुख दिन होता है, जबकि उत्तर भारत में यह त्योहार, 5 दिन का होता है, जो धनतेरस से शुरू होकर, नरक चतुर्दशी, मुख्य पर्व दीपावली, गोवर्धन पूजा से होते हुए भाई दूज पर समाप्त होता है।

 

भारतवर्ष में मनाए जाने वाले, सभी त्यौहारों में दीपावली का, सामाजिक और, धार्मिक दोनों दृष्टि से, अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव, भी कहते हैं। तमसो मा, ज्योतिर्गमय, अर्थात्, ‘अंधेरे से ज्योति, अर्थात प्रकाश की ओर जाइए, यह उपनिषदों की आज्ञा है। पांच दिनों तक मनाया जाने वाला, पांच पर्वों का अनूठा त्योहार है, दीपावली। आइये जानते है, पांच दिवसीय दीपोत्सव त्यौहार और, उसके महत्व के बारे में।

 

पहला दिन, धनतेरस,

पहले दिन को धनतेरस कहते हैं। दीपावली महोत्सव की शुरुआत धनतेरस से होती है। इसे धन त्रयोदशी भी कहते हैं। धनतेरस के दिन मृत्यु के देवता यमराज, धन के देवता कुबेर और आयुर्वेदाचार्य धन्वंतरि की पूजा का महत्व है। इसी दिन समुद्र मंथन में भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे और उनके साथ आभूषण व बहुमूल्य रत्न भी समुद्र मंथन से प्राप्त हुए थे। तभी से इस दिन का नाम 'धनतेरस' पड़ा और इस दिन बर्तन, धातु व आभूषण खरीदने की परंपरा शुरू हुई। 

 

इस समय बदलते मौसम में, कई तरह की मौसमी  बीमारियां होती है। हमारे आयुर्वेद में, रोगो से लड़ने के लिए, कई उपाय बताये गए है। इसलिए लोग, भगवान धवंतरि की पूजा करे औ,र उनके माध्यम से आयुर्वेद के ज्ञान से, निरोग बने, इसलिए धनतेरस के दिन, भगवान् धन्वतरि की पूजा का,  विधान  बनाया गया है। कुबेर, धन के देवता माने जाते है, और इस समय किसानों के पास, तैयार फसल होती है। अच्छी फसल का, अच्छा दाम मिले, इसलिए, कुबेर की पूजा की जाती है।

 

दूसरा दिन, नरक चतुर्दशी,

दूसरे दिन को नरक चतुर्दशी, रूप चौदस और काली चौदस कहते हैं। इसी दिन नरकासुर का वध करके, भगवान श्रीकृष्ण ने, 16100 कन्याओं को, नरकासुर के बंदीगृह से, मुक्त कर उन्हें, सम्मान प्रदान किया था। इस दिन को लेकर मान्यता है कि, इस दिन सूर्योदय से पूर्व, उबटन एवं स्नान करने से, समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं, और पुण्य की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन से, एक ओर मान्यता जुड़ी हुई है, जिसके अनुसार, इस दिन उबटन करने से, रूप व सौंदर्य में वृद्ध‍ि होती है। 

जिस प्रकार, नरकासुर के अत्याचारों से, भगवान् श्री कृष्ण ने, गोपियों को मुक्त कराकर, उनको सम्मान दिलवाया था, उसी प्रकार, आज के समय में, हमको यथा शक्ति, पीड़ित, दुखी, असहाय और, अधिकार विहीन लोगो की, यथा शक्ति मदद करनी चाहिए, हम सभी को, अंदर और बाहर  की अत्याचारी शक्तियों का, पूरी ताकत के साथ अंत करने का भी, सन्देश मिलता है।

 

तीसरा दिन, दीपावली,

तीसरे दिन को, 'दीपावली' कहते हैं। यही मुख्य पर्व होता है। इस दिन, महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही कुबेर की पूजा भी की जाती है। शुभ मुहूर्त में, लक्ष्मीजी का पाना, सिक्का, तस्वीर अथवा श्रीयंत्र, धानी, बताशे, दीपक, पुतली, गन्ने,  कमल पुष्प, ऋतु फल आदि, पूजन की सामग्री खरीदी जाती है। घरों में लक्ष्मी के, नैवेद्य हेतु, पकवान बनाए जाते हैं। शुभ मुहूर्त, गोधूलि बेला, अथवा स्थिर लग्न में, लक्ष्मी का वैदिक या, पौराणिक मंत्रों से पूजन किया जाता है।

प्रारंभ में गणेश, अंबिका, कलश, मातृका, नवग्रह, पूजन के साथ ही, लक्ष्मी पूजा का विधान होता है। लक्ष्मी के साथ ही, अष्टसिद्धियां,  अणिमा, महिला, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्रकाम्या, ईशिता, बसिता तथा, अष्टलक्ष्मी के साथ ही, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य भोग और योग की पूजा भी करना चाहिए। इसके पश्चात, महाकाली स्वरूप दवात तथा, महासरस्वती स्वरूप, कलम और लेखनी की पूजा होती है। बही, बसना, धनपेटी,लॉकर, तुला, मान आदि में, स्वास्तिक बनाकर पूजन करना चाहिए। पूजा के पश्चात दीपकों को, देवस्थान, गृह देवता, तुलसी, जलाशय, पर आंगन, आसपास सुरक्षित स्थानों, गौशाला आदि मंगल स्थानों पर लगाकर दीपावली का उत्सव मनाये । 

माता लक्ष्मी का पूजन, धन संम्पत्ति का आव्हान और, खुशियों के आगमन का प्रतीक है, इस दिन को हम, अपनी बाहरी सुंदरता के साथ ही साथ, अपनी अंदरूनी सुंदरता को भी गढ़ने का, सन्देश प्राप्त करते है, खुशियों को सबके साथ, मिल कर बाटना, इस त्योहार का उद्देश्य है,

 

चौथा दिन,  अन्नकूट, या गोवर्धन पूजा,

चौथे दिन अन्नकूट या, गोवर्धन पूजा होती है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को, गोवर्धन पूजा, एवं अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। इसे परेवा,  या प्रतिपदा भी कहते हैं। खासकर इस दिन, घर के पालतू बैल, गाय, बकरी आदि को अच्छे से स्नान कराकर, उन्हें सजाया जाता है। फिर इस दिन घर के आंगन में, गोबर से गोवर्धन बनाए जाते हैं, और उनका पूजन कर, पकवानों का भोग, अर्पित किया जाता है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि, त्रेतायुग में जब इन्द्रदेव ने, गोकुलवासियों से नाराज होकर, मूसलधार बारिश शुरू कर दी थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने, अपनी छोटी अंगुली पर, गोवर्धन पर्वत उठाकर, गांववासियों को गोवर्धन की छांव में, सुरक्षित किया। तभी से इस दिन, गोवर्धन पूजन की परंपरा, भी चली आ रही है।

गोवर्धन पूजा, बुरी प्रवृत्तियों को रोकने के, सामर्थ्य का दिन है, भगवान् श्री कृष्ण ने, गोवर्धन पर्वत को, हाथ की सबसे छोटी उंगली पर धारण कर, इन्द्र देव के अभिमान का मर्दन किया था, इस दिन का, महत्वपूर्ण सन्देश यह है की, अगर हमारे इरादे नेक और, कमजोरो की रक्षा करने के लिए है तो, सामने कितनी ही बड़ी ताकत हो, उसे हार माननी ही पड़ेगी,  

 

पांचवां दिन,  भाई दूज और, यम द्वितीया,

इस दिन को भाई दूज और, यम द्वितीया कहते हैं। भाई दूज, पांच दिवसीय, दीपावली महापर्व का, अंतिम दिन होता है। भाई दूज का पर्व, भाई बहन के रिश्ते को, प्रगाढ़ बनाने और, भाई की लंबी उम्र के लिए, मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन भाई, अपनी बहन को, अपने घर बुलाता है, जबकि, भाई दूज पर, बहन अपने भाई को, अपने घर बुलाकर, उसे तिलक कर, भोजन कराती है और, उसकी लंबी उम्र की कामना करती है। 

 

इस दिन को लेकर मान्यता है कि, यमराज अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए, उनके घर आए थे और, यमुना जी ने उन्हें, प्रेमपूर्वक भोजन कराया और, यह वचन लिया कि, इस दिन, हर साल वे अपनी बहन, के घर भोजन के लिए पधारेंगे। साथ ही, जो बहन इस दिन, अपने भाई को आमंत्रित कर, तिलक करके भोजन कराएगी, उसके भाई की उम्र लंबी होगी। तभी से, भाई दूज पर, यह परंपरा बन गई।

पांच दिवसीय दीपोत्सव का, यह अंतिम दिन, विजय पर्व के रूप में भी, मनाया जाता है, बहन के द्वारा, भाई के तिलक करने से, सनसार की सभी समस्याओ पर, भाई की विजय का, उसकी बहन का,  भरोसा होता है, ऐसा विश्वास जताया जाता है की, भाई को हर सफलता मिले, और उसका जीवन, खुशियों से महक उठे, बहन का यही निस्चल प्रेम, भाई को कठिनाइयों  से, लड़ने की ताकत देता है,   

 

इस वीडियो को देख रहे, आप सभी को,  दीपावली की हार्दिक बधाई, और उन्नत, संमृद्ध, निरोगी जीवन की, अशेष शुभकामनाये,

सभी का, कल्याण हो,

 

 

13 नवंबर 2020 दिन शुक्रवार

धनत्रयोदशी धनतेरस पूजन मुहूर्त

आरोग्य देवता धन्वन्तरि वृषभ काल सांय 5:33 से रात्रि 7:29 तक

धन के देवता कुबेर प्रदोष काल सांय 5:25 से रात्रि 8:06 तक

माता लक्ष्मी पूजन रात्रि 8:12से रात्रि 10:01तक

14 नवंबर 2020 दिन शनिवार

नरक चतुर्दशी दीपावली

अभ्यंग स्नान मुहूर्त प्रातः 5:23 से प्रातः 6:43 तक

कार्यालय संस्थान उद्योग संस्थान हेतु

शुभ दीपावली गणेश लक्ष्मी पूजन मुहूर्त

शुभ मुहूर्त प्रातः 8:06 से प्रातः 9:27 तक

अभिजीत मुहूर्त प्रातः 11:44 से अपराह्न  1:50 तक

विजया मुहूर्त अपराह्न 1:53 से अपराह्न  2:36 तक

गोधूलि मुहूर्त सांय 5:17 से सांय 5:41 तक

सिद्ध योग वर्ष लग्न प्रदोष काल सांय 5:18 से रात्रि 7:10 तक

स्वाति नक्षत्र के साथ दिन का सर्वश्रेष्ठ विशिष्ट पूजन मुहूर्त

सिंह लग्न मुहूर्त रात्रि 11:40 से रात्रि 1:54 तक

महानिशीथ काल रात्रि 11:14 से रात्रि 12:06 तक

विद्यार्थियों द्वारा विद्या अर्जन हेतु माँ शारदा पूजन शुभ मुहूर्त

अमृत लाभ मुहूर्त अपराह्न 2:17 से सांय  4:07 तक

शुभ लाभ मुहूर्त सांय 5:28 से रात्रि 7:07 तक

15 नवंबर 2020 दिन रविवार

गोवर्धन पूजा

पूजा मुहूर्त दोपहर 3:50 से सांय 6:14 तक

शुभ पूजा मुहूर्त सांय 6:06 से रात्रि 8:07 तक

16 नवंबर 2020 दिन सोमवार

भैयादूज टीका मुहूर्त

शुभ टीका मुहूर्त अपराह्न 1:31 से अपराह्न  3:40 तक